Thursday, April 21, 2022

सुनो धरती की


सुनो धरती की 
***
श्वास कंठ में कबसे अटकी
तृषा नहीं गंगाजल की 
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।

वक्ष पटल पर पड़ी लकीरें
चोट तुम्हीं ने पहुँचाई
नाखूनों से नोचा तुमने
पीड़ा से मैं अकुलाई
कमी अन्न की खलिहानों में 
चित्र सोचती अब कल की ।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा
धीरज की गगरी छलकी।।

चेतन मन उर्वी ढूँढ़ रही
हरित वल्लरी आलिंगन
व्यथा भोगती जड़ होने की
चाहूँ साँसों का स्पंदन
उर पाथर पर पड़ी दरारें
बहे धार शीतल जल की।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।

चली उर्वशी देवलोक से
क्रीड़ा सुख को तरस रही
दैवत्व पुरुरवा की तृष्णा
अब तक कितने कष्ट सही
बंद नैन में स्वप्न डोलते
आस लगी स्वर्णिम पल की ।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा 
धीरज की गगरी छलकी।।


अनिता सुधीर आख्या




20 comments:

  1. अत्यंत भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी, मार्मिक गीत मैम, नमन🙏

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  2. धन्यवाद गुंजित

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. अत्यंत संवेदनशील मर्मस्पर्शी गीत सृजन 💐💐💐🙏🏼

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  5. सच्चाई बयां करती हुई रचना। बेहद खूबसूरत गीत 👏👏

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  6. धरती की पुकार नहीं सुनी तो धरती अच्छे से सुनाना भी जानती है ।
    गहन रचना ।

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  7. रचना बढिया है अनीता जी,पर कुछ शब्द शायद सही नहीं लिखे गये।एक बार रचना का फिर से अवलोकन अवश्य करें सस्नेह बधाई और शुभकामनाएं ❤🌺

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    1. जी हार्दिक आभार
      कृप्या मार्गदर्शन करें

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    2. अनीता जी,एक आध शब्द गलत नज़र आ रहा था।पर अब लगता है ब्लॉगर के कई ब्लोग्स पर इस तरह की त्रुटि नज़र आ रही है।जैसे पहले आपके ब्लॉग पर खलिफानोँ दिख रहा था,अब खलिहानों नज़र आ रहा,जो कि शायद सही हैपहले धीरज की जगह धिरे दिख रहाथा,अब धीरज सही दिख रहा है।।सस्नेह ❤

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  8. सार्थक गीत। उत्तम संदेश

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  9. बहुत अच्छी सामयिक चिंतन प्रस्तुति

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  10. पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी की सार्थकता सिद्ध करती सुंदर रचना ।

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  11. बहुत बहुत सुन्दर यूपी

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