अंतरयामी प्रभु सर्वज्ञ अच्युत अनिरूद्ध हैं।
अपने बनाये संसार की दशा देख उनकी वेदना और पीड़ा असहनीय है ।
कर्मयोगी प्रभु मानव जाति को स्वयं *कल्कि* बनने का उपदेश दे रहे हैं।
इस को दोहा छन्द गीत के माध्यम से दिखाने का प्रयास
आहत है मन देख के ,ये कैसा संसार।
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
नौनिहाल भूखे रहें ,मुझे लगाओ भोग ,
तन उनके ढकते नहीं,स्वर्ण मुझे दे लोग।
संतति मेरी कष्ट में,उनका जीवन तार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
नहीं सुरक्षित बेटियां ,दुर्योधन का जोर,
भाई अब दुश्मन बने,कंस हुए चहुँ ओर ।
आया कैसा काल ये ,मातु पिता हैं भार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,
होती राधा आज है,गली गली बदनाम।
रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
सुनो भक्तजन ध्यान से ,समझो केशव नाम,
क्या लेकर तू जायगा ,कर्म करो निष्काम।
स्वयं कल्कि अवतार हो,कर सबका उद्धार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।