आँकड़े कागजों पर
खूब फले फूले
बुधिया की आँखों में
टिमटिम आस जली
कोल्हू का बैल बना
निचुड़ा गात खली
कर्ज़े के दैत्य दिए
खूँटी पर झूले।।
आँकड़े...
गमछे में धूल बाँध
रंग भरे पन्ने
खेतों की मेड़ों पर
लगते हैं गन्ने
अनुदान झुनझुने से
नाच उठे लूले।।
आँकड़े...
मतपत्र बने पूँजी
रेवड़ी बाँट कर
फिर झोपड़ी बिलखती
क्यों रही रात भर
जय किसान ब्रह्म वाक्य
आज सभी भूले।।
आँकड़े...
अनिता सुधीर आख्या
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को "समय व्यतीत करने के लिए" (चर्चा अंक-3808) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी आ0 हार्दिक आभार
Deleteसुंदर कविता।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी।
ReplyDeleteअनिता जी हार्दिक आभार
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन .
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
ReplyDeleteबेहद ही सटीक लेखन का सृजन किया है आपने। आज के राजनीतिक परिवेश में कैसे शोषण का शिकार हो रहे हैं लोग, किस तरह अपना स्व-मूल छोड़ कर छोटे उपलब्धियों मे लगे हैं लोग,.... आपकी रचना ने बखूबी इस तथ्य को उजागर किया है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई।
सुन्दर सृ जन
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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