सोरठा
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कथा रही प्राचीन,प्रेम त्याग त्यौहार की।
काल हुआ आधीन ,इन्द्राणी तप सूत्र से,।।(१)
कर्णवती का नेह,मुगल हुमायूँ बाँधते।
बचा बहन का गेह,वचन सुरक्षा का निभा।।(२)
पावन रेशम डोर,बाँधे बंधन नेह के ।
भीगे मन का कोर,खुशियों के त्यौहार में।।(३)
सजती राखी हाथ,तिलक सजा के शीश पर।
उन्नत तेरा माथ,बहना दे आशीष ये ।।(४)
आशाओं की डोर,कठिन पलों में थाम लो।
सुखद नवल हो भोर,भाई करना यत्न ये।।(५)
पर्व हुये व्यापार,बैठा है झूठा अहम।
भ्रात बहन का प्यार,इस जग में अनमोल है।(६)
करिये सार्थक अर्थ,रक्षा बंधन पर्व का ।
होंगें तभी समर्थ,धरती की रक्षा करें।।(७)
भैया रखना मान,सभी बहन के प्रेम का।
प्रण यह मन में ठान,नहीं कभी व्यभिचार हो।(८)
ऐसी राखी आज,सैनिक को सब बाँध दें।
रहे शीश पर ताज,हाथ न सूने हों कभी।।(९)
आया विपदा काल,शुद्ध कलावा बाँधिये।
समझें पल की चाल,अपनी रक्षा आप कर।।(१०)
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ReplyDeleteबहुत सुंदर सोरठा
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteशानदार सोरठे...।
अति सुंदर सोरठा
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