Monday, January 20, 2020

कुंडलिनी
गंगा

गंगा माँ का अवतरण,भागीरथी प्रयास।
शाप मुक्ति की कामना,तप किये कई मास।
तप किये कई मास,चली हिमनद से चंगा ।
मिटा धरा का त्रास  ,जटा से उतरीं गंगा ।

पौड़ी से गंगा चलीं,संगम हुआ प्रयाग ।
काशी गंगा घाट पर ,भाग्य सभी के जाग।
भाग्य सभी के जाग,चले कलकल ये दौड़ी ।
करती पाप विनाश, करे मन हर्षित पौड़ी ।

सागर में गंगा मिली,कपिल संत के धाम।
गंगासागर तीर्थ में ,सादर करें प्रणाम ।
सादर करें प्रणाम,सिक्त होता मन गागर।
मोक्ष प्राप्ति हो भाव,ज्ञान का बहता सागर।

निर्मल गंगा नीर से,बढ़ता पुण्य प्रताप।
रोगनाशिनी गंग को,रखें स्वच्छ हम आप।
रखें स्वच्छ हम आप,युगों से बहती अविरल।
औषधि से भरपूर,युगों तक रखिये निर्मल ।

©anita_sudhir

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