Wednesday, January 29, 2020

ऋतुराज

*विष्णुपद छन्द
26 मात्रिक मापनी मुक्त
16,10 यति ,अंत गा वाचिक
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*
मौसम ने अब ली अँगड़ाई,शीत प्रकोप घटे,
नव विहान की आशा लेकर,अब ये रात कटे।

लगे झूलने बौर आम पर,पतझड़ बीत रहा ,
गुंजन कर भौंरा अब चलता ,है मकरंद बहा।

उगता सूरज लिये लालिमा ,नभ में चाँद छिपा ,
तमस दूर कर करे उजाला ,दिनकर करे कृपा।

पीली चूनर ओढ़े धरती,कलियां मुस्कायीं
प्रकृति छेड़ती मधुर रागिनी,खुशियां हैं छायीं।

बासंती हो तन मन झूमे,नाच रही सखियाँ,
सजा रहे बेटी की डोली ,भर आती अँखियाँ।

कोयल कुहुके डाली डाली,मुग्ध  बयार चले,
झूम झूम के प्रेमी देखो  मिल रहे हैं गले।

पूजते विष्णु महेश तुमको,माँ हंस वाहिनी,
बुद्धि ज्ञान की देवी हो तुम,श्वेत वसन धरिणी।

बसंत पंचमी शुभ दिवस में,आदि ज्ञान करिये,
मातु शारदे आशीष मिले,मान सदा रखिये ।

©anita_sudhir

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 31
    जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...