Thursday, April 2, 2020

राम

राम

दर्शन चिंतन राम का,है जीवन आधार।
आत्मसात कर राम को,मर्यादा है सार ।।


नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल
नेह हृदय कुछ बोल रहा था,
बसी राम की उर में मूरत
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।

मुखमंडल की आभा ऐसी,
दीप्ति सूर्य की चमके जैसी।
बंद नयन में तुमको पाया,
आठ याम की लगन लगाया।
इस पनघट पर घट था रीता
ज्ञान चक्षु वो खोल रहा था।
बसी  राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।

आहद अनहद सब में हो तुम ,
निराकार साकार सभी तुम ।
विद्यमान हो कण कण में तुम ,
ऊर्जा का इक अनुभव हो तुम ।
झांका  जब अपने अंतस में,
वरद हस्त अनमोल रहा था ।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।

राम श्याम बन संग रहो तुम,
चाह यही मैँ ,तुम्हें निहारूँ ।
मन मंदिर के दरवाजे पर,
नित दृगजल से पाँव पखारूं।
इसी आस में बैठी रहती ,
उर सागर किल्लोल रहा था।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।

अनिता सुधीर 'आख्या'

8 comments:

  1. वाह! अति सुंदर!!!
    मम हृदय कुंज निवास कुरु
    कामादि खल दल गंजनम।
    🙏🙏🌹🌹🙏🙏

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    1. जी आ0 हार्दिक आभार
      आपको हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. बहुत सुन्दर और सामयिक प्रस्तुति।
    श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    Replies
    1. आ0 हार्दिक आभार
      आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  3. बहुत ही सुन्दर | लाजवाब |
    रामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |

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  4. कितनी सुन्दर रचना है यह। अवश्य ही इसे लिखते वक्त आपको ईश्वर की अनुभूति हुई होगी। मुझे कोई संशय नहीं इस पर।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया ।

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    Replies
    1. जी आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे भावुक कर दिया ,
      सत्य है ,जो इष्ट के लिए भाव थे ,वो आ नही पाय हैं
      सादर

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