मेरा शहर
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धाम नवाबों के नगर,लखनपुरी है नाम ।
बागों का है ये शहर,लिये दशहरी आम ।।
अविरल नदिया गोमती, उत्तर रहा प्रदेश ।
हँसते हँसते आप भी ,कुछ पल करें निवेश।।
आप आप पहले कहें,अद्भुत है तहजीब ।
अवध नज़ाकत जानिये, उर्दू रहे करीब ।।
बाड़ा है ईमाम का ,भूलभुलैया नाज ।
हर पल के इतिहास में,कितने सिमटे राज।।
ज्येष्ठ मास मंगल रहा ,यहां बड़ा ही खास ।
पंच मुखी हनुमान जी,पूरी करिये आस ।।
नृत्य कला का केंद्र ये ,संस्कृति से भरपूर।
चिकन काम प्रसिद्ध हुआ,जरदोजी मशहूर।।
शाला चलती शोध की ,सिखा रहा विज्ञान ।
औषधि, पादप क्षेत्र में ,होते अनुसंधान ।।
पान लखनवी खाइए,संग टुंडे कबाब ।
लाजवाब कुल्फी रहे,हजरतगंज शबाब।।
कण कण में है शायरी ,आशिक़ी रहा मिजाज।
चौराहे नुक्कड़ सजे ,रिश्तों के नित साज ।।
गंगा जमुनी सभ्यता,है इसकी पहचान।
मुझको इस पर गर्व है,मेरा शहर महान।।
अनिता सुधीर आख्या
सार्थक दोहे।
ReplyDeleteशिल्प पर भी ध्यान दीजिए।
जीहार्दिक आभार
Deleteअभी सुधार करते हैं
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०२-०५-२०२०) को "मजदूर दिवस"(चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनिता जी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteवाह वाह ... लखनऊ को शब्दों की धार दे दी आपने ...
ReplyDeleteइतनी खूबियों को छंदों में समेटे लाजवाब रचना है ...
जी हार्दिक आभार आ0
Deleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteकमाल के दोहे...।
जी हार्दिक आभार
Deleteशानदार और सार्थक दोहे सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखि
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