सोच का विषाणु
छिपा हुआ है विष अणुओं का
बुद्धि कवच की कच्ची गोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली
मिले जीत जब दिखता दुश्मन
बात सही है नहीं ठिठोली
निम्न सोच की चादर ताने
अदृश्य सोता रहा बिचोली
एक कोप कोरोना बनकर
खेल रहा है आंख मिचोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
मार कुंडली बैठा सिर पर
नित भ्रष्ट करे सुविचारों को
अपना उल्लू रहा साधता
क्यों अनगिन पाल विकारों को
अहम् खड़ा है शीश उठाये
खेल तंत्रिकाओं से होली।
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
दबे पांव धीरे घुस आता
और दिखाता हेरा फेरी
भेजा मति को घास चराने
करता पल पल तेरी मेरी
एक बखेड़ा द्वार खड़ा है
एक बनाता घृणित रंगोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।
अनिता सुधीर आख्या
अच्छी रचना ... भावपूर्ण ...
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