Sunday, March 13, 2022

लेखनी अब ऊँघती-सी





छंद की ग्रीवा हठी-सी

माँगती अक्षर जड़ाऊ।

हाट कहता यह व्यथा फिर

काव्य क्यों रहता बिकाऊ।।


कल्पना की आस भागी

शब्द को कसकर जकड़ लें

बुद्धि ने पहरा लगाया

बाँध कर गति को पकड़ लें

आर्द्रता मसि पर पसरती

भाव कब रहते टिकाऊ।।


जब कलम अनुभूतियों के

पीत सरसों खेत ढूँढ़े

पृष्ठ  कोरे  ले उदासी

कथ्य रस की रेत ढूँढ़े

व्यंजना या लक्षणा के

सूखते हैं कूप प्याऊ।।



वर्ण पर पाला पड़ा जो

वृष्टि से कैसे निपटता

शीत की फिर ओढ़ चादर

पौष शब्दों से लिपटता

लेखनी अब ऊँघती-सी

मौन की यात्रा थकाऊ।।


अनिता सुधीर 

12 comments:

  1. काव्य क्यों रहता बिकाऊ🙏🙏अत्यंत सटीक मैम

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  2. वर्ण पर पाला पड़ा है👌👌👌

    नव्य बिंब से सज्जित सुगठित व्यंजना युक्त अप्रतिम नवगीत।
    नमस्तुभ्यं

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  3. Wah, apratim rachna ,lekhni to mukher hai sakhi!

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  4. अत्यंत संवेदनशील एवं सटीक नवगीत 💐💐💐🙏🏼

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    1. धन्यवाद दीप्ति जी

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  5. बहुत ही सुंदर नवगीत दीदी👌👌👏👏

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  6. सटीक बिंब से सुसज्जित उत्कृष्ट रचना

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  7. बहुत सुंदर गीत ।
    सुंदर प्रस्तुती !!

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