कुंडलिया
1)
सपने जग कर देखिए, बीते काली रात।
खुले नैन से ही सधे, नूतन नवल प्रभात।।
नूतन नवल प्रभात, लक्ष्य दुर्गम पथ जानें ।
करके बाधा पार, मिले मंजिल तय मानें ।
सपनों का संसार, सजाएँ नित सब अपने।
कठिन लक्ष्य को भेद, और फिर देखें सपने।।
2)
अपने जीवन को गढ़ें, शिल्पकार बन आप।
छेनी की जब धार हो, अमिट रहेगी छाप।।
अमिट रहेगी छाप, सदा रखिये मर्यादा ।
सच्चाई का मार्ग, नहीं हो झूठ लबादा।।
सतत हथौड़ा सत्य का,पूर्ण हो सारे सपने ।
नैतिकता आधार,गढ़ें सब सपने अपने।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर रचना maam
ReplyDeleteजी आभ्गर
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