होलिका दहन
आज का प्रह्लाद भूला
वो दहन की रीत अनुपम।।
पूर्णिमा की फागुनी को
है प्रतीक्षा बालियों की
जब फसल रूठी खड़ी है
आस कैसे थालियों की
होलिका बैठी उदासी
ढूँढती वो गीत अनुपम।।
खिड़कियाँ भी झाँकती है
काठ चौराहे पड़ा जो
उबटनों की मैल उजली
रस्म में रहता गड़ा जो
आज कहता भस्म खुद से
थी पुरानी भीत अनुपम।।
बांबियाँ दीमक कुतरती
टेसुओं की कालिमा से
भावना के वृक्ष सूखे
अग्नि की उस लालिमा से
सो गया उल्लास थक कर
याद करके प्रीत अनुपम।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत अच्छी सारवान रचना हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteअति सुंदर एवं सार्थक सृजन 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteउत्कृष्ट
ReplyDeleteहोलिका बैठी उदासी🙏🙏
ReplyDeleteउत्कृष्ट,🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteशानदार सार्थक रचना।
ReplyDeleteनई पोस्ट- होली : राजस्थानी धमाल with Lyrics व नृत्य विशेष
Bahut sunder,bahut kuchh yaad aa gaya!!
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
Deleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव, उत्कृष्ट सृजन, होली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभ्गर आ0
DeleteAti sunder💐💐
ReplyDeleteसुंदर व्यंजनाओं से सुसज्जित सुंदर नव गीत।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं सखी।
हार्दिक आभार सखि
Delete*टेसुओं की कलमा से* वाह वाह
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