*प्रीत हिंडोला*
उर जलधि में कर हिलोरें
प्रेम फलता-फूलता सा
रश्मि रथ पर पग सँभारे
भोर नटखट-सी उतरती
कुनमुनी सी गुनगुनाहट
साज बन कर अब चहकती
प्रीत हिंडोले लहर में
हिय कुसुम कुछ झूलता सा।।
तोड़ नीरवता विपिन भी
ले मलय सौरभ विचरता
लालिमा से अर्घ्य ले कर
फिर हृदय उपवन निखरता
हो तरंगित नाचता मन
कालिमा को भूलता सा।।
सप्त रंगों को सजोये
श्वेत अम्बर मुग्ध है अब
आगमन नव बौर का हो
नींद व्याकुल स्निग्ध है अब
उर प्रतीक्षा में धड़कता
जो रहा था सूखता सा।।
अनिता सुधीर आख्या
अति सुंदर एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ 💐💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteअत्यंत सुंदर🙏
ReplyDeleteWah,matramugdh kar diya!
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
Deleteबहुत सुंदर प्यारे भावों वाली कोमल सी रचना।
ReplyDeleteधरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
हार्दिक आभार आ0
Deleteप्रेम पर सुन्दर सृजन
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबौर के मौसम की स्निग्धता को लुटाती सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुंदर भाव
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत बहुत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
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