शूल को पथ से हटाने का मजा कुछ और है।
वीथिका को नित सजाने का मजा कुछ और है।।
व्यंजना या लक्षणा में भाव हृद के व्यक्त हों
छंद को फिर गुनगुनाने का मजा कुछ और है।।
क्लांत बैठा हो पथिक जब जिंदगी से हार कर
पुष्प उस पथ में बिछाने का मजा कुछ और है।।
पंख सपनों को लगाकर दूर बाधा को करें
मुश्किलों के पार जाने का मजा कुछ और है।।
चाल चलकर काल निष्ठुर ओढ़ चादर सो रहा
लालिमा में चहचहाने का मजा कुछ और है।।
पीर की सामर्थ्य क्यों अवसाद को नित जोड़ती
वेदना में मुस्कुराने का मजा कुछ और है।।
कौन हूँ मैं क्या प्रयोजन द्वंद्व अंतस ने लड़ा
लक्ष्य को फिर से जगाने का मजा कुछ और है।।
अनिता सुधीर
अति सुंदर एवं सार्थक गीतिका 💐💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीप्ति जी
Deleteअत्युत्तम गीतिका🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत सुन्दर
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