Tuesday, March 22, 2022

जल प्रबंधन

विश्व जल दिवस 


प्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की

सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।

कानाफूसी करती सड़कें
चौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।

बूँद टपकती नित ही तरसे
कैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।

अनिता सुधीर आख्या

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच     "कवि कुछ ऐसा करिये गान"  (चर्चा-अंक 4378)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. अत्यंत संवेदनशील एवं सटीक सृजन 💐💐💐🙏🏼

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    1. धन्यवाद दीप्ति जी

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  4. अत्यंत सटीक🙏

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  5. जल दिवस पर शानदार कविता...कानाफूसी करती सड़कें
    चौराहे का नल सूखा
    चूल्हा देखे खाली बर्तन
    कच्चा चावल है भूखा
    माँग रही है विधिवत रोटी
    भूख बिलखती निर्धन की।।...वाह

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  6. सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
    जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
    ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
    किस की करनी को भरता
    ताल नदी का वक्ष सूखता
    आशा पय संवर्धन की।।
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत जल दिवस पर ...।

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  7. बूँद टपकती नित ही तरसे
    कैसे जीवन भर जाऊँ
    नारे भाषण बाजी से अब
    कैसे मन को बहलाऊँ
    बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
    जन सोचे अवरोधन की।।
    वाह!क्या खूब कहा।
    बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  8. प्यासी मौतें डेरा डाले
    पीड़ा नीर प्रबंधन की

    सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
    जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
    ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
    किस की करनी को भरता
    ताल नदी का वक्ष सूखता
    आशा पय संवर्धन की।।
    बहुत सुन्दर रचना.

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