प्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की
सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।
कानाफूसी करती सड़कें
चौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।
बूँद टपकती नित ही तरसे
कैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।
अनिता सुधीर आख्या
सटीक चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आ0
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ReplyDeleteअत्यंत संवेदनशील एवं सटीक सृजन 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteअत्यंत सटीक🙏
ReplyDeleteजल दिवस पर शानदार कविता...कानाफूसी करती सड़कें
ReplyDeleteचौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।...वाह
सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
ReplyDeleteजनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत जल दिवस पर ...।
बूँद टपकती नित ही तरसे
ReplyDeleteकैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।
वाह!क्या खूब कहा।
बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
ReplyDeleteप्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की
सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़ कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।
बहुत सुन्दर रचना.