मुक्तक
1)
दर्पण तुम लोगों को आइना दिखाते हो।
बड़ा अभिमान तुमको कि तुम सच बताते हो।
बिना उजाले के क्या अस्तित्व रहा तेरा ,
दायें को बायें कर तुम क्यों इतराते हो ।।
2)
ये दर्पण पर सीलापन था।
या छाया का पीलापन था ।।
दर्पण को पोछा बार -बार ,
क्या आँखो का गीलापन था ।
3)
हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।
अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।
सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,
और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।
©anita_sudhir
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