Sunday, November 17, 2019

नादानी
छंदमुक्त
***

नादानी में यूं जिंदगी दांव पर लगा रहे
क्यों इन हुक्मरानों के झांसे में आ रहे

कहीं अनशन कहीं पत्थर कहीं गोली है
एक मोहरा बन खेलते खून की होली है।

कभी ये सोचा है हाथ तेरे क्या आयेगा
इस भरी दुनिया मे तू अकेला रह जायेगा

एक दिन गुमनाम गलियों में गुम जायेगा
तेरा कोई नामोंनिशान यहाँ ना रह पायेगा।

जो किया भूल जाओ, देर नही हुई है
सुधर जाओ अभी जीने के रास्ते कई हैं

शिक्षालयों में संस्कृति की नींव तोड़ा नहीं करते
सुबह का भूला घर लौटे,उसे भूला नहीं कहते

हौसले को उड़ान दे नया सफर शुरू करो
मेहनत लगन से अपनी नई मंजिल तय करो ।

अनिता सुधीर

No comments:

Post a Comment

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...