Saturday, November 30, 2019




दोहावली

बनारस 
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वरुणा असि के नाम से ,पड़ा बनारस नाम ।
घाटों की नगरी रही ,कहें मुक्ति का धाम ।।

विशिष्टता इन घाट की ,है काशी की साख।
होती गंगा आरती  ,कहीं चिता की राख ।।

विश्वनाथ बाबा रहे ,काशी की पहचान ।
गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।

गंगा जमुना संस्कृति ,रही बनारस शान ।
तुलसी रामायण रचें,जन्म कबीर महान ।।

कर्मभूमि 'उस्ताद' की , काशी है संगीत।
कत्थक ठुमरी की सजे ,जगते भाव पुनीत।।

काशी विद्यापीठ है  ,शिक्षा का आधार ।
विश्व विद्यालय हिन्दू,'मदन' मूल्य का सार।।

दुग्ध ,कचौरी शान है ,मिला'पान 'को मान ।
हस्त शिल्प उद्योग से ,'बनारसी' पहचान ।।

त्रासदी अधजले शवों ,की !भोग रहे लोग।।
गंगा को प्रदूषित करें ,काशी को ही भोग ।।

बाबा भैरव जी रहे , काशी थानेदार ।
हुये द्रवित ये देख के ,ठगने का व्यापार।।

धीरे चलता शहर ये,अब विकास की राह।
काशी मूल रूप रहे ,जन मानस की चाह ।।

©anita_sudhir

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