Sunday, March 14, 2021

मुँदरी

प्रेम चिन्ह संचित किये,लिए सुहानी याद।
मुँदरी की अब वेदना,सहती नित्य विवाद।।

मुँदरी में सजते रतन, बदलें नौ ग्रह चाल।
नीलम,पन्ना मूँगिया,टालें विपदा काल।।

बाँधे बंधन नेह के,ले हाथों में हाथ।
अनामिका मुँदरी सजा,चली पिया के साथ।।

हठ करती है प्रेयसी,मुँदरी दे दो नव्य।
त्रिया चरित को जानिए,खर्च करें फिर द्रव्य।।

नीर थाल में हो रहा,हार जीत का खेल।
मुँदरी की फिर हार में ,बढ़ा दिलों का मेल।।

अनिता सुधीर आख्या

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत सुन्दर दोहे।

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. जी हार्दिक आभार आ0

      Delete
  4. वाह, मुँदरी की अनुपम गाथा !

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...