होली
उल्लाला उल्लाल है,फागुन रक्तिम गाल हैं।
कहीं लाज से लाल है,कहीं बाल की खाल है।।
मन बासंती हो रहा,कोयल कुहुके डाल है।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल है।।
पिचकारी हो प्रेम की,जीवन होली रंग हो।
दहन कष्ट का हो सभी,नहीं रंग में भंग हो।।
रूप धरे विश्वास का,आया अब प्रह्लाद है।
अंत बुराई का सदा,यही गूँजता नाद है ।।
होली की इस अग्नि में,राग द्वेष सब भस्म हो।
कर्म यज्ञ हो जीवनी,जीवन की ये रस्म हो।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं
मुग्ध करती रंग बिखेरती रचना - - शुभकामनाओं सह।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआदरणीया अनीता सुधीर जी, होली की अशेष शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन हेतु साधुवाद। ।।।
आप को भी होली की शुभकामनाएं
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ReplyDeleteहोली की इस अग्नि में,राग द्वेष सब भस्म हो।
कर्म यज्ञ हो जीवनी,जीवन की ये रस्म हो।
...होली के रंगों में डूबी सुंदर संदेश भरी रचना, होली की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।
हार्दिक आभार आ0
Deleteआपको भी शुभकामनाएं
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
Deleteहोली की शुभकामनायें
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