गीतिका-
आधार छंद - चौपाई
ऋतु आयी लेकर खुशहाली।
चहुँ दिस फैली किंशुक लाली।।
उड़ते रंग हवाओं में जब
झूम उठे फिर डाली डाली।।
तूफानों से क्या घबराना
रैना बीतेगी ये काली ।।
मनुज देह उपहार प्रभो का
बनें जगत उपवन के माली।।
परहित में जब तन लगता है
भरी रहे फिर सबकी थाली।।
नेताओं की आयी होली
पिचकारी भर देते गाली।।
प्रश्न प्रणाली पर वही करें
करते जो हैं नित्य दलाली।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteअहा, होली की छटा बिखर गई । सुंदर रचना
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चौगाइयाँ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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