बेल/लता
हुआ पुराना गोदना,है अब टेटू बेल।
अधुना युग की ये प्रथा,है पैसे का खेल।।
अमरबेल के रूप में,इच्छाओं का वास।
जीवन भर पोषण लिया,बना मनुज को दास।।
शंकर जी को प्रिय लगे,बेल धतूरा खास।
दुग्ध धार अर्पित करें,पूरी करते आस।।
शर्बत उत्तम बेल का,ठंडी है तासीर।
औषधि है सौ मर्ज की,हरे मनुज की पीर।।
वृक्ष तुल्य संबल मिला,सदा सजन के साथ।
लता बनी लिपटी रहूँ,ले हाथों में हाथ।।
अनिता सुधीर आख्या
हुआ पुराना गोदना,है अब टेटू बेल।
ReplyDeleteअधुना युग की ये प्रथा,है पैसे का खेल।।
बिलकुल सही बात ...
सभी दोहे एक से बढ़ कर एक ...
जी हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 31 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी रचना को स्थान देने के।लिये हार्दिक आभार
Deleteउव्वाहहहह
ReplyDeleteशानदार दोहे
सादर..
जी सादर आभार
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक धन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2085...किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें ) पर गुरुवार 01 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
Deleteसमय की नब्ज पकड़कर लिखी
ReplyDeleteप्रभावी रचना
वाह
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
जी अवश्य
Deleteहार्दिक आभार
बहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteआभार सखी
Deleteवाह ! बहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक दोहे।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
हार्दिक आभार आ0
Deleteमुग्धता बिखेरती सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सभी दोहे ... समय के साथ चलते हुए
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteसुंदर संदेशों से सजे प्रेरक दोहे । हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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