दोहावली
तन साधन है कर्म का,मिला हमें उपहार।
स्वास्थ्य पूंजी जान कर,शुद्ध रखें आचार।।
स्वास्थ्य सुख की चाह में,मची योग की धूम।।
गर्व विरासत पर हमें,भारत माटी चूम ।
सूर्य किरण सँग जागिये,करिये आसन योग।
प्रकृति चिकित्सा खुद करे,उत्तम जीवन भोग।।
योग साधना चक्र की,मन हो मूलाधार।
स्वास्थ्य मन का श्रेष्ठतम, यही धर्म आधार।।
अग्नि तत्व मणिपुर सधे,योग साधना तंत्र।
साधक मन को साधते,जपें सूर्य के मंत्र ।।
करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
श्वासों के इस चक्र से,मुख पर आए नूर ।।
आसन बारह जो करे,होता बुद्धि निखार ।
सूर्य नमन से हो रहा ,ऊर्जा का संचार ।।
पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत कर,करें स्वयं से भेंट।।
ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता,बढ़े रक्त संचार।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Delete