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बशर की लालसा बढ़ती नशे में चूर होता है
समय की शाख पर बैठा सदा मगरूर होता है
मशक़्क़त से कमा कर फिर निभा जो प्रीत को लेते
इनायत जब ख़ुदा की हो वही मशहूर होता है
समय के फेर में उलझे नियम क्यों भूल जाते सब
बहारें लौट आती हैं यही दस्तूर होता है
रिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है
नसीबों से मिले जो भी वही दिल से लगा लेना
हो उसकी रहमतें जीवन बशर पुरनूर होता है
अनिता सुधीर आख्या
ReplyDeleteरिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है
नसीबों से मिले जो भी वही दिल से लगा लेना
हो उसकी रहमतें जीवन बशर पुरनूर होता है ..शानदार शेर..सुंदर गजल ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर अवश्य पधारें ..सादर नमन..
जी हार्दिक आभार
Deleteजी हो आये आपके पास
बहुत खूबसूरत गजल मैम 👏👏👏👌
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आइए आपका हार्दिक स्वागत है
जी हार्दिक आभार
Deleteजी हार्दिक आभार
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
जी हार्दिक आभार
Deleteरिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
ReplyDeleteछुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है
बहुत खूब ।हर शेर कुछ न कुछ कहने में पूर्ण समर्थ ।
खुला गर छोड़ दें दर्द को तो
ज़ख्म सूख जाएगा
सुकून तभी मिलता हमें तो
जब दर्द कुरेदा जाएगा ।
हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी आभार
Deleteबहुत सुंदर गजल
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteसमय के फेर में उलझे नियम क्यों भूल जाते सब
ReplyDeleteबहारें लौट आती हैं यही दस्तूर होता है
बहुत सुन्दर....
जी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर गजल
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