नवगीत
होलिका दहन
आज का प्रह्लाद भूला
वो दहन की रीत अनुपम।।
पूर्णिमा की फागुनी को
है प्रतीक्षा बालियों की
जब फसल रूठी खड़ी है
आस कैसे थालियों की
होलिका बैठी उदासी
ढूँढती वो गीत अनुपम।।
खिड़कियाँ भी झाँकती है
काष्ठ चौराहे पड़ा जो
उबटनों की मैल उजली
रस्म में रहता गड़ा जो
आज कहती भस्म खुद से
थी पुरानी भीत अनुपम।।
बांबियाँ दीमक कुतरती
टेसुओं की कालिमा से
भावना के वृक्ष सूखे
अग्नि की उस लालिमा से
सो गया उल्लास थक कर
याद करके प्रीत अनुपम।।
अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 28 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए जी हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर रचना...होली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteरंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जी आ0 हार्दिक आभार
Deleteआपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं
बांबियाँ दीमक कुतरती
ReplyDeleteटेसुओं की कालिमा से
भावना के वृक्ष सूखे
अग्नि की उस लालिमा से
सो गया उल्लास थक कर.
सच ही आज वो उत्साह और उल्लास कहीं दीखता नहीं है .... सुन्दर नवगीत
जी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजे आभार
Deleteएक सुंदर रचना
ReplyDeleteआपको होली की महापर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं परिवार सहित by सुगना फाउंडेशन
बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteशुभकामनाएं
जी हार्दिक आभार
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