गीतिका
स्त्री बाजार नहीं है।
वो व्यापार नहीं है।।
क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।
नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।
उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।
है परिवार अधूरा
जग आधार नहीं है
आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर रचना अनीता जी।
ReplyDeleteसादर।
जी हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।