Friday, April 29, 2022

ग़ज़ल

 ग़ज़ल


जिंदगी कब बीतती है प्यार की बौछार से

मुश्किलों का है सफ़र ये बोझ के अंबार से


वक़्त की इन आंधियों से हार कर क्या बैठना

चीर दे तूफ़ान को तू हौसलों की धार से


डोर नाजुक टूटती है प्रेम औ विश्वास की

चोट खाई है बशर ने फिर इन्हीं गद्दार से


मज़हबी कमजोरियां क्यों इस क़दर अब बढ़ चलीं

धर्म क्या अब यों बचेगा आपसी तक़रार से


क्यों कलम का रंग भी अब पूछते हैं सब यहाँ

अब समर लड़ना बचा है लेखनी तलवार से


वो अलग ही शख्सियत जो जीत की जिद पर अड़ी

कामयाबी की कहानी कब रची है हार से


किस अमन की चाह में कतरा लहू का बह रहा

जीत लो संसार को अब  प्रेम के व्यवहार से


अनिता सुधीर





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