लघुकथा
ई उपवास
**
रोहन( दीप्ति से ) गुस्से में..
इतनी देर से फ़ोन बज रहा है ,फ़ोन क्यों नहीं उठा रही हो?
दीप्ति :मेरा उपवास है ,इसीलिए नहीं उठा रही हूँ।
रोहन :क्या तमाशा है ,रोज कोई न कोई उपवास रहता है तुम्हारा! और फ़ोन न उठाने का क्या संबंध है व्रत से !
दीप्ति :आज हमारा ई उपवास है ।मोबाइल , इंटरनेट ,सोशल मीडिया से दूर हूँ ।
रोहन :किसी को कोई आवश्यक कार्य या कोई परेशानी हो सकती है।तुम फ़ोन नही उठा रही।
क्या तुमने अपने सभी परिचित को सूचित किया कि
तुम्हारा ई उपवास है ।
तुम्हारे फोन न उठाने से वो चिंता में पड़ जायेगा
और दूसरी बात उपवास का वास्तविक अर्थ समझती हो ।
उपवास ,व्रत एक प्रण और प्रतिज्ञा है ।अपने मन और इच्छाओं पर नियंत्रण का एक माध्यम है।
अगर तुम्हें ये उपवास करना है तो एक दिन क्यों !
तुम अपने पर नियंत्रण रख कर प्रतिदिन e उपवास रख सकती हो ,कुछ समय सीमा तय कर लो,और उसके पालन का प्रण लो ।
दीप्ति फ़ोन मिलाने लगी .थी...
रोहन की बात वो समझ चुकी थी ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
ई उपवास
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रोहन( दीप्ति से ) गुस्से में..
इतनी देर से फ़ोन बज रहा है ,फ़ोन क्यों नहीं उठा रही हो?
दीप्ति :मेरा उपवास है ,इसीलिए नहीं उठा रही हूँ।
रोहन :क्या तमाशा है ,रोज कोई न कोई उपवास रहता है तुम्हारा! और फ़ोन न उठाने का क्या संबंध है व्रत से !
दीप्ति :आज हमारा ई उपवास है ।मोबाइल , इंटरनेट ,सोशल मीडिया से दूर हूँ ।
रोहन :किसी को कोई आवश्यक कार्य या कोई परेशानी हो सकती है।तुम फ़ोन नही उठा रही।
क्या तुमने अपने सभी परिचित को सूचित किया कि
तुम्हारा ई उपवास है ।
तुम्हारे फोन न उठाने से वो चिंता में पड़ जायेगा
और दूसरी बात उपवास का वास्तविक अर्थ समझती हो ।
उपवास ,व्रत एक प्रण और प्रतिज्ञा है ।अपने मन और इच्छाओं पर नियंत्रण का एक माध्यम है।
अगर तुम्हें ये उपवास करना है तो एक दिन क्यों !
तुम अपने पर नियंत्रण रख कर प्रतिदिन e उपवास रख सकती हो ,कुछ समय सीमा तय कर लो,और उसके पालन का प्रण लो ।
दीप्ति फ़ोन मिलाने लगी .थी...
रोहन की बात वो समझ चुकी थी ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
अच्छा कटाक्ष है ... ई उपवास ही क्यों ... उपवास भी माखौल और आडम्बर बन कर रह गया है। यहां तो लोग सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी और बाकी दिन मांसाहारी ... ढोंग है सब ...
ReplyDeleteकिसी भी भावना और परंपरा का मूल तत्व भूल चुके है ।
ReplyDeleteफिर चाहे वो विसर्जन के नाम पर भोंडापन हो या कुछ और ।
आ0 आपका सादर धन्यवाद,
आपकी सोच जो समाज की कुरीतियों के प्रति है, अच्छा है। इसका स्वयं भी तिरस्कार करना है और आगे भी फैलाना है। एक छोटी कोशिश तो की ही जा सकती है। मन में मलाल तो नहीं रहेगा कि प्रयास ही नहीं किया।
ReplyDeleteअपनी भावी पीढ़ी जब समझदार हो जायेगी ,तब हमें कोसेगी तो नहीं ना कि उनके अभिभावक दकियानूस थे।
शानदार सीख और सार्थक।
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