तितली के रंगीन परों सी
जीवन में सारे रंग भरे
चंचलता उसकी आँखों में
चपलता उसकी बातों मे
थिरक थिरक कर चलती थी
सरगम सी बहती रहती थी
पावों में पायलिया की खनखन
जल तरंग सी छिड़ती थी
घर की रौनक ,सांसो की डोरी
आँगन में चिड़िया सी चहकती थी
सुबह के सूरज की किरणों जैसी
चपल मुग्ध बयार सी बहती थी।
वक़्त का कहर ऐसा टूटा
हैवानियत ने उसे ऐसे लूटा
उसका सामान मिला झाड़ियों में
तन को उसके लहूलुहान किया
जख्मी उसकी रूह हो गयी
हिरनी सी चपलता उसकी
दरिंदगी की भेंट चढ़ गई
हर आहट से डर वो
घर के कोने में दुबक गई
घर जो गूंजता था उसकी
मासूम शैतानियों से,
मरघट सा सन्नाटा फैल गया।
कुछ क्यों हैवान हो रहे
क्यों जिस्म को नोच रहे
क्या उनके घर में बेटियाँ नहीँ
इन मासूम कलियों को खिलने दो
इतना भी नीचे मत गिरो
इनकी चपलता चंचलता रहने दो
घुट कर जीने को मजबूर न करो
मासूमों को सर उठा जीने दो ।
©anita_sudhir
जीवन में सारे रंग भरे
चंचलता उसकी आँखों में
चपलता उसकी बातों मे
थिरक थिरक कर चलती थी
सरगम सी बहती रहती थी
पावों में पायलिया की खनखन
जल तरंग सी छिड़ती थी
घर की रौनक ,सांसो की डोरी
आँगन में चिड़िया सी चहकती थी
सुबह के सूरज की किरणों जैसी
चपल मुग्ध बयार सी बहती थी।
वक़्त का कहर ऐसा टूटा
हैवानियत ने उसे ऐसे लूटा
उसका सामान मिला झाड़ियों में
तन को उसके लहूलुहान किया
जख्मी उसकी रूह हो गयी
हिरनी सी चपलता उसकी
दरिंदगी की भेंट चढ़ गई
हर आहट से डर वो
घर के कोने में दुबक गई
घर जो गूंजता था उसकी
मासूम शैतानियों से,
मरघट सा सन्नाटा फैल गया।
कुछ क्यों हैवान हो रहे
क्यों जिस्म को नोच रहे
क्या उनके घर में बेटियाँ नहीँ
इन मासूम कलियों को खिलने दो
इतना भी नीचे मत गिरो
इनकी चपलता चंचलता रहने दो
घुट कर जीने को मजबूर न करो
मासूमों को सर उठा जीने दो ।
©anita_sudhir
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआ0 सादर आभार ,
ReplyDeleteसुन्दर भाव अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी सादर आभार
Deleteबहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन सखी ।
ReplyDeleteसादर आभार सखी
ReplyDeleteजब तक बेटियां पुरुषों से जीने का हक मांगेगी तब तक इस हवसी जानवर की सोच नहीं बदलने वाली।
ReplyDeleteउम्दा।
बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन....।
ReplyDeleteजी सही कहा
ReplyDeleteसादर अभिवादन