Tuesday, September 17, 2019

मानव अधिकार पर कुछ पंक्तियां


इस सभ्य सुसंस्कृत उन्नत समाज में
मानव लड़ रहा अधिकारों के लिए
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनती ,सभी
सिर उठा कर जिये,समता का भाव लिए ।


शिक्षा ,कानून आजादी ,धर्म ,भाषा
काम  हो सबका मौलिक अधिकार
क्या कभी चिंतन कर सुनिश्चित किया
क्यों नहीं बना अब तक वो उसका हक़दार।


समता के नाम पर क्या किया तुमने
आरक्षण का झुनझुना थमा हीन साबित किया
बांटते रहे रेवड़ियाँ अपने फायदे के लिए
सब्सिडी और कर्ज माफी से उन्हें बाधित किया।


मानव अधिकार की बातें कही जाती हैं
अधिकार के नाम पर भीख थमाई जाती है
देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश
इस लेनदेन में जनता की गाढ़ी कमाई जाती है।


क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनाई जाती है
जहां अधिकार की बातें बेमानी हो जाए
ना कोई भूखा सोए ,न शिक्षा से वंचित हो
भेदभाव मिट जाए,हर हाथ को काम मिल जाये ।


योजनाएं तो बनाते हो पर लाभ नहीं मिलता
बिचौलिए मार्ग में बाधक बन तिजोरी भरते है
कानून का अधिकार है,लड़ाई लंबी चलती है
लड़ने वाला टूट गया बाकी सब जेबें भरते है।


महंगी शिक्षा व्यवस्था है कर्ज ले कर पढ़ते है
नौकरी  गर न मिली  तो कर्ज कैसे चुकायेगें
कर्ज देने मे भी बीच के लोग कुछ  खायेंगे
बेचारा किसान  दोनो तरह से चपेटे में आएंगे।


आयोग बना देने से,एक दिवस मना लेने से
रैली निकाल लेने से ,कुछ नहीं होगा
मानव पहल तुम करो ,दूसरे के अधिकार मत छीनो
खोई हुई प्रतिष्ठा  के वापस लाने के हकदार बनो ।


अनिता सुधीर

8 comments:

  1. बहुत खरी और सटीक यथार्थ चिंतन देती सार्थक रचना।

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  2. आ0 सखी आप का हार्दिक आभार

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  3. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आ0

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  4. गहरे प्रश्न ... पर क्या उत्तर इतना आसान है ...
    खुद से पूछना होगा ये प्रश्न और उनका उत्तर ... प्रभावी रचना ...

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    1. आ0 आपकी सराहना के लिए आभार ,
      आज की व्यवस्था में जीना आसान नही है, पर स्वयं में तो सुधार करना ही होगा ।
      स्नेह बनायें रखे और मार्गदर्शन करते रहे
      सादर

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  5. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया
    सादर

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  6. सादर धन्यवाद आ0

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