स्वेद/पसीना
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खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।
सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।
सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।
घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।
पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करता है।
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खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।
सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।
सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।
घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।
पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करता है।
वाह सार्थक सृजन
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteजी सादर अभिवादन आ0
ReplyDeleteपसीने का महत्वपूर्ण विश्लेषण करती रचना ... अच्छा है ...
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन के लिऐ सादर अभिवादन
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