मंथन
मुक्तक
मंथन का ये विष मुझे अब पीना होगा
बिन अमरत्व की चाह अब जीना होगा,
तुम गलत कभी हो सकते हो,भला
मुझे ही अपने होठों को अब सीना होगा ।
कात्यायनी माता के चरणों में पुष्प *** कात्यायन ऋषि की सुता,अम्बे का अवतार हैं। छठे दिवस कात्यायनी, वंदन बारम्बार है।। दानव अत्याचार से,मिला ...
सादर आभार आ0
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