गीतिका
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परहित सदा करते रहे विषपान है,
अंतर सरल है नेक वो धनवान है ।
क्यों आज फैला ये तमस चहुँ ओर है,
इसको मिटाना लक्ष्य प्रथम प्रधान है
उम्मीद का दीपक सदा जलता रहे,
अब आंधियों को ये नया प्रतिदान है।
दुःख काल में विसरित न हो स्थिर रहे
जग में सदा रहता वही बलवान है ।
रहते सजग जो देश हित में सर्वदा,
उन का सदा होता रहा गुणगान है ।
यूँ छोड़ के जाने कहाँ वो अब चले,
विस्मृत कठिन स्मृति समाहित प्रान हैं।
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