Saturday, March 6, 2021

गजल


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बशर की लालसा बढ़ती नशे में चूर होता है
समय की शाख पर बैठा सदा मगरूर होता है

मशक़्क़त से कमा कर फिर निभा जो प्रीत को लेते
इनायत जब ख़ुदा की हो वही मशहूर होता है

समय के फेर में उलझे नियम क्यों भूल जाते सब
बहारें लौट आती हैं यही दस्तूर होता है 

रिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है

नसीबों से मिले जो भी वही दिल से लगा लेना
हो उसकी रहमतें जीवन बशर पुरनूर होता है


अनिता सुधीर आख्या

16 comments:


  1. रिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
    छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है

    नसीबों से मिले जो भी वही दिल से लगा लेना
    हो उसकी रहमतें जीवन बशर पुरनूर होता है ..शानदार शेर..सुंदर गजल ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर अवश्य पधारें ..सादर नमन..

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    1. जी हार्दिक आभार
      जी हो आये आपके पास

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  2. बहुत खूबसूरत गजल मैम 👏👏👏👌
    हमारे ब्लॉग पर भी आइए आपका हार्दिक स्वागत है

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  3. जी हार्दिक आभार

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  4. रिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
    छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है

    बहुत खूब ।हर शेर कुछ न कुछ कहने में पूर्ण समर्थ ।

    खुला गर छोड़ दें दर्द को तो
    ज़ख्म सूख जाएगा
    सुकून तभी मिलता हमें तो
    जब दर्द कुरेदा जाएगा ।

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  5. समय के फेर में उलझे नियम क्यों भूल जाते सब
    बहारें लौट आती हैं यही दस्तूर होता है

    बहुत सुन्दर....

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