आँकड़े कागजों पर
खूब फले फूले
बुधिया की आँखों में
टिमटिम आस जली
कोल्हू का बैल बना
निचुड़ा गात खली
कर्ज़े के दैत्य दिए
खूँटी पर झूले।।
गमछे में धूल बाँध
रंग भरे पन्ने
खेतों की मेड़ों पर
लगते हैं गन्ने
झुनझुना है दान का
नाच उठे लूले।।
मतपत्र बने पूँजी
रेवड़ी बाँट कर
फिर बिलखती झोपड़ी
क्यों रही रात भर
जय किसान ब्रह्म वाक्य
की हिलती चूलें।।
अनिता सुधीर
गमछे में धूल बांध, वाह वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 23 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आ0
Deleteअत्यंत संवेदनशील सटीक एवं मार्मिक सृजन 💐💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteआँकड़े कागजों पर
ReplyDeleteखूब फले फूले... .
सदियों की है रीति पुरानी,
आज मेरी कल किसी और की बारी!
हमारे यहाँ हर काम कागज पर हो जाता है!
ये हमारे हुनरमंद लोगों को दर्शाता है!
सटीक सृजन!
साधुवाद..
वाह!अद्भुत!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
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