लघुकथा
अदिति .... आप अपनी अल्मारी खोले क्या सोच रहीं हैं। कुछ परेशान लग रहीं हैं आप ,क्या बात है माँजी!
पुनीता ....कुछ नहीं बेटा ,अपनी ख्वाहिशों और चाहतों का बोझ देख रही हूँ ।
अदिति .... माँजी साफ साफ बताइए ,पहेलियां क्यों बुझा रही हैं ,प्लीज बताइये न क्या हुआ!
पुनीता .....अल्मारी में भरी साड़ियां और कपड़े देख रही हूँ , बेटा ,आवश्यकता न होने पर भी कितनी ही साड़ियां खरीदती रही । तुम्हारे पापा ने कई बार कहा भी कि इतनी फिजूलखर्ची ठीक नहीं है ।इसमें से तो कई साड़ियां शायद एक दो बार ही पहनी हो ।
अब ये मन पर भी बोझ हो रहीं है । सोच रही हूँ मेरे बाद ......
अदिति ... माँ जी आप कुछ भी बोल देती हैं ऐसा न कहिये
पुनीता ... चलो बेटा अब तुम मेरा बोझ कम करने में मेरी मदद करो । बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें इन कपडों की बहुत आवश्यकता होगी ।
चलो उन्हें दे आते हैं , उनकी जरूरत भी पूरी हो जाएगी और मेरे मन का बोझ भी कम हो जाएगा ।
संतुष्टि का भाव लिये वो साड़ियां निकालने लगी ...
अनिता सुधीर
वाकई हम अनावश्यक चीज़ें इकट्ठा कर ख़ुद पर बोझ बढाते जाते हैं, बेहतर है उन्हें किसी ज़रूरतमंद को दें। बहुत सुंदर संदेश देती लघुकथा🙏
ReplyDeleteबहुत अच्छा संदेश
ReplyDelete💐💐
Deleteबहुत सुंदर संदेशप्रद लघु कथा 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार सरोज जी
Deleteअति सुंदर एवं सार्थक संदेश देती हुई लघु कथा 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीप्ति जी
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