आँकड़े देख जो आज डरता नहीं ।
चोट खाये बिना क्यों सँभलता नहीं ।।
जिंदगी चार दिन की कहानी बनी
आपदा काल अब भी खिसकता नहीं।।
भूल कर्त्तव्य अब कर रहे गलतियां,
देश का हाल उनको अखरता नहीं।।
चार जन से कहाँ दूरियाँ सब रखें,
मुख कवच भीड़ में आज लगता नहीं।।
वो गिनाने लगे नीति की ख़ामियां,
दूध का दाँत भी जब निकलता नहीं।।
दुश्मनों की कुटिल चाल रहती सदा
भूल क्यों वो रहे स्वार्थ टिकता नहीं।।
अनिता सुधीर आख्या
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०६-०१ -२०२२ ) को
'लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे'(चर्चा अंक-४३०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह! उम्दा सखी यथार्थ पर प्रहार करती सुंदर गीतिका,हर बंध अभिनव सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद सखि
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी आभ्गर
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteवाह
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