मैं .......विवेकानंद बोल रहा हूँ
मैं बदलता भारत देख रहा हूँ
मैं युवा भारत की आहट सुन रहा हूँ
मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ
कि तुम
लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर बढ़ चले हो
मार्ग में शूल हैं पर निडर चलते चले हो
सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े
सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे हो
मुझे तुम पर पूरा विश्वास है ,
पर
कभी ये देख काँप जाता हूँ
जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ
नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ
भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हें देख नहीं पाता हूँ
अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ
हिंदी की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।
संस्कृति के पतन पर व्यथित हो जाता हूँ
मैं युवा भारत से आह्वान करता हूँ
सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो
चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो
तुम्हारे नाम पर भी दिवस के नाम हो
सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर रहो
मैं ........विवेकानंद आह्वान करता हूँ
अनिता सुधीर आख्या
👍👍
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteदेश के युवाओं का आवाहन करती सुंदर रचना
ReplyDeleteसकारात्मक सोच एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हुई पंक्तियाँ 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteसादर आभार दीप्ति जी
Deleteअत्यंत ओजपूर्ण सृजन 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (13-1-22) को "आह्वान.. युवा"(चर्चा अंक-4308)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आ0
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआशा और विश्वास से भरी पंक्तियाँ
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीया
ReplyDeleteधन्यवाद सखि
Deleteअद्भुत सखी जैसे स्वामी जी की आत्मा आहत हो कर आह्वान कर रही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक प्रेरक पोस्ट।
सस्नेह साधुवाद।
हार्दिक आभार सखि
Deleteबहुत ही उम्दा रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबेहद ओजपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteसादर।