पुरानी लोकोक्ति नए कलेवर में
आधुनिक युग में नए तेवर में
अंधेर नगरी चौपट राजा
*टका सेर भाजी टका सेर खाजा*
और अब
अंधेर नगरी चौपट राजा
*सवा सेर भाजी मुफ्त में खाजा*
सभी खाते खिलाते मुफ्त में खाजा
चलो मिल बजाएं इनका बाजा ।
सद्गुणी आज के युग में मिलते नहीं
यदि मिल भी जाएं तो खिलते नहीं
चाटुकारिता में लोग आगे निकल गए
डार्विन सिद्धान्त के अब माने बदल गए ।
नैतिकता का बचा अब अर्थ कहाँ
व्यवस्था में जीने में असमर्थ यहाँ।
नेताओं को लोभ जाति के वोट का
त्रासदी जनसंख्या के विस्फोट का
बिचौलिए मुफ्त में खाते हर स्तर पर
गरीबी रखे फिर कलेजे पर प्रस्तर।
नौकरशाही मुफ्त में खाती रही है
भूख करोडों की मिटती नही है।
वतन की शान से सरोकार नही है
मीरचंद जैसे गद्दार सदा से यहीं है
काश ऐसा हो जाये
अंधेरी न नगरी रहे न चौपट राजा
*टका सेर भाजी हो और चार टके का खाजा*
अनिता सुधीर आख्या
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