टूटते ख्वाब की जो कहानी बनी।
लफ़्ज़ बिखरी हुई जिंदगानी बनी।।
हर्फ दर हर्फ जो उम्र लिखती रही
क्यूं उसी कारवाँ की रवानी बनी।।
रात परछाईयों की सहमती दिखे
क्या नज़र भी अभी ख़ानदानी बनी।।
ग़म सिखाते चले मुस्कुराना हमें
ज़िंदगी फिर यही आसमानी बनी।।
राख जो चिठ्ठियों की छिपा कर रखी
याद उस दौर की अब निशानी बनी ।।
अनिता सुधीर
ग़म सिखाते चले मुस्कुराना हमें
ReplyDeleteज़िंदगी फिर यही आसमानी बनी।।
वाह , बहुत खूब ।👌👌👌👌
हार्दिक आभार संगीता जी
Deleteबहुत सुंदर ग़ज़ल। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। नववर्ष 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत अच्छी गजल
ReplyDeleteआपका नववर्ष मंगलमय हो
हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आ0
Deleteवाह!गज़ब।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
हार्दिक आभार अनिता जी
Deleteसुंदर
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