Saturday, February 22, 2020

आजकल


मापनी - गालगा गालगा गालगा गालगा
स्त्रगविनि छन्द
समान्त - इयाँ
पदान्त - आजकल
गीतिका
*******

खोलते ही कहाँ खिड़कियां आजकल ,
झाँकती रह गयीं  रश्मियां आजकल ।

प्यार की चाह में मन धरा सूखती ,
नफरतों की गिरे बिजलियाँ आजकल।

बोलते ही रहे हम सदा तौलकर,
प्रेम में फिर बढ़ी दूरियां आजकल ।

खो गये भाव अब शब्द मिलते नहीं
भेजते हैं कहाँ पातियाँ आजकल ।

शाम होने लगी जो सफर की यहाँ ,
अब डराने लगी आंधियाँ आजकल।

दाँव देखो सियासी चले जा रहे
घर जला सेंकते रोटियां आजकल ।
अनिता सुधीर

No comments:

Post a Comment

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं

 राम नवमी की  हार्दिक शुभकामनाएं दर्शन चिंतन राम का,हो जीवन आधार। आत्मसात कर मर्म को,मर्यादा ही सार।। बसी राम की उर में मूरत  मन अम्बर कुछ ड...