Tuesday, February 25, 2020

दोहावली

ताकत के मद में रहे ,कुछ सत्ता आरूढ़ ।
करते अनर्थ !अर्थ का,बुद्धिहीन ये मूढ़ ।।

कार्य अतिरिक्त सौंपते ,हनन हुये अधिकार।
नियुक्ति तदर्थ कीजिये,सुचारुता हो सार ।।

शंका अनर्थ निर्मूल है ,कर समर्थ विश्वास।
ले तदर्थ की चाह अब ,पूरी करिये आस ।।

घृणित कार्य उन्माद में,भूलते राष्ट्रवाद।
आग लगाते देश में,ये कैसा अवसाद ।।

दूर करें अवसाद को,छोड़ें वाद विवाद ।
देश प्रेम उन्माद में,फूँक बिगुल का नाद ।।

गौरान्वित हैं हम सभी,हुआ देश आजाद ।
आजादी के नाम पर ,कैसा करें जिहाद।।

धर्म जाति बदलाव का ,मुद्दा प्रेम जिहाद ।
असली मुद्दा  भूलते ,....फैलाते उन्माद ।।

हुआ मार्ग अवरुद्ध ये ,निकल पड़ी बारात ।
नाचें गाते  झूमते ,...........भूले यातायात ।।

द्वारे वंदनवार है  ,आयी शुभ बारात ।
डोली बेटी की सजी ,खुशियों की सौगात ।।

अब दहेज की मांग पर,वापस हो बारात ।
बेटी कम मत आंकिये,बने सहारा तात ।।

वो निरीह रोता रहा ,लौट गई बारात ।
बिकने को तैयार थे ,नहीं सुने वो बात ।।

विष का प्याला पी गये ,वो सुकरात महान ।
जीवन दर्शन उच्चतम, कैसे करें बखान ।।

मसि कागद छूये नहीं,दोहे रचे कबीर ।
कालखंड के सत्य  में ,उपजी मन की पीर।।

सत्य आचरण जानिये  ,कहते दास कबीर ।
रूढ़िवाद पर चोट कर ,कही बात गंभीर।।

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अनिता सुधीर "आख्या"

3 comments:

  1. आ0 रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

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  2. बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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