***
दादी बाबा संग नहीं
भाई बहन का चलन नहीं
नाना नानी दूर हैं
और बच्चे...
एकाकी बचपन को मजबूर हैं ।
भौतिक सुविधाओं की होड़ लगी
आगे बढ़ने की दौड़ है
अधिकार क्षेत्र बदल रहे
कोई कम क्यों रहे
मम्मी पापा कमाते हैं
क्रेच छोड़ने जाते हैं
शाम को थक कर आते हैं
संग समस्या लाते हैं
बच्चों खातिर समय नहीं
मोबाइल , गेम थमाते है
बच्चों के लिये कमाते हैं
और बच्चे ...
बचपन खोते जाते हैं ।
आबोहवा अब शुद्ध नहीं
सड़कों पर भीड़ बड़ी
मैदान खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले ही
बड़ा होता जाता है।
याद करें
अपने बचपन के दिन
दादी के वो लाड़ के दिन
भाई बहनों संग मस्ती के दिन
दोस्तों संग वो खेल खिलौने के दिन
क्या ऐसा बचपन अब बच्चे पाते हैं
बच्चे ....
अपना बचपन खोते जाते हैं
आओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।
©anita_sudhir
दादी बाबा संग नहीं
भाई बहन का चलन नहीं
नाना नानी दूर हैं
और बच्चे...
एकाकी बचपन को मजबूर हैं ।
भौतिक सुविधाओं की होड़ लगी
आगे बढ़ने की दौड़ है
अधिकार क्षेत्र बदल रहे
कोई कम क्यों रहे
मम्मी पापा कमाते हैं
क्रेच छोड़ने जाते हैं
शाम को थक कर आते हैं
संग समस्या लाते हैं
बच्चों खातिर समय नहीं
मोबाइल , गेम थमाते है
बच्चों के लिये कमाते हैं
और बच्चे ...
बचपन खोते जाते हैं ।
आबोहवा अब शुद्ध नहीं
सड़कों पर भीड़ बड़ी
मैदान खेल के लुप्त हुए
बस्ते का बोझ बढ़ता गया
कैद हो गये चारदीवारी में
न दोस्तों का संग मिला
बच्चों का ....
बचपन खोता जाता है
बच्चा समय से पहले ही
बड़ा होता जाता है।
याद करें
अपने बचपन के दिन
दादी के वो लाड़ के दिन
भाई बहनों संग मस्ती के दिन
दोस्तों संग वो खेल खिलौने के दिन
क्या ऐसा बचपन अब बच्चे पाते हैं
बच्चे ....
अपना बचपन खोते जाते हैं
आओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।
©anita_sudhir
चली जाती है बचपन इक दिन और हम अपना बचपन अपने अगली पीढ़ी में ढ़ूँढ़ते रह जाते हैं । वो दिन, निश्छल से वो पल...यूँ ही यादों में हलचल मचाते रहते हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर लेखन हेतु बहुत-बहुत बधाई ।
आ0 सादर धन्यवाद
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (10-02-2020) को 'खंडहर में उग आयी है काई' (चर्चा अंक 3607) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
जी सादर आभार
ReplyDeleteअपना बचपन खोते जाते हैं
ReplyDeleteआओ हम बच्चों का बचपन लौटाएं
स्वयं उनके संग बच्चे बन जायें
वो बेफिक्री के दिन लौटा दें
बच्चों का बचपन लौटा दें।
बहुत ही सुंदर सन्देश ,बेहतरीन सृजन अनीता जी
आ0 सादर आभार
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन यथार्थ की सीढ़ी चढ़ती प्रत्येक पंग्ति.
ReplyDeleteसादर