Saturday, February 12, 2022

वृद्धावस्था


 *वृद्धावस्था*


टूटी कमर दीवारों की

तिल तिल करके नित्य मरे


सोने जाती आधी रात

लिए दुखों का सँग तकिया

नींद सिरहाने ऊँघी जो

स्वप्न बने नित ही छलिया

आँसुओं की सभा लगी फिर

अपनों को कब गले भरें।।


पग काँपते घर आँगन के

चार कदम जो चलना है

संयमी तुलसी पीली पड़ती

द्वार आस का पलना है

अमृत रस साथी को देना

स्वयं मौत से कौन डरे।।


दोनों खाट ओसारे की

अस्थियों का पुल बनाएं

स्तम्भ जर्जर गिरा नदी में

चप्पू अब किसे थमाएं

ठहर गयी दोनों ही सुई

हलचल केवल एक करे।।


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