मध्य अहम् की दीवारों से
कैसे पायें पार।
रखें ताक पर धीरज को
ढूँढ़ रहें क्यों सेज,
पहन प्रेम का आभूषण
पाती मन की भेज
बनता है राई का पर्वत
बात बात पर रार।।
मध्य अहम् की दीवारों से,कैसे पायें पार।।
किसकी रेखा बड़ी रहेगी
ह्रदय पटल पर द्वंद
कीट द्वेष का कुलबुल करता
बना गले का फंद
उम्मीदों की गठरी भारी
दूजे को दें भार।
मध्य अहम् की दीवारों से,कैसे पायें पार।।
प्रेम कूप अब बिना नीर के
सूख रहे हैं भाव
रहे क्रोध में तनी भृकुटियाँ
छिपा रहे हैं घाव
उच्च नासिका अब कब सोचे
नैना कर लें चार
मध्य अहम् की दीवारों से ,कैसे पायें पार।।
अनिता सुधीर
अद्भुत सृजन मैंम👏👏👏
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच "यह है स्वर्णिम देश हमारा" (चर्चा अंक-4336) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर अभिवादन आ0
Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
अत्यंत संवेदनशील एवं सटीक 💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteसत्य
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteछोटी-छोटी बातों पर आज मनमुटाव हो रहे हैं, जिस धैर्य और सहनशीलता को पहले सद्गुण माना जाता था आज उसकी कोई क़दर नहीं करता
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनिता जी
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार अनिता जी
Deleteअत्यंत अद्भुत, सटीक गीत🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
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