ग़ज़ल
अब गमों रंजिशों से बचा कौन है।
इस उजड़ते चमन का ख़ुदा कौन है।।
आईना दूसरों को दिखाता रहे
ऐब अपने कभी देखता कौन है।।
पत्थरों का शहर ज़ख्म देता रहा
ठोकरों से बचाता भला कौन है।।
ज़िंदगी अनकही सी गुजरती गयी
सुन सके जो इसे वो सगा कौन है।।
आप मेरी ग़ज़ल क्यों नहीं बन सके?
आप ही बोलिए बेवफ़ा कौन है।।
इश्क़ की जो नुमाइश लगी आजकल
रूह से रूह का अब पता कौन है।।
ये सियासत सदा चाल चलती रही
अब वतन की यहाँ सोचता कौन है।।
अनिता सुधीर
वाह बेहतरीन गजल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह वाह
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