Thursday, February 24, 2022

कविता

 *बनी प्रेयसी सी चहकी*


खुली गाँठ मन पल्लू की जब

पृष्ठों पर कविता महकी


बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की

मसि कागद पर वह सोई 

भावों की अभिव्यक्ति में फिर

कभी पीर सह कर रोई

देख बिलखती खंडित चूल्हा

आग काव्य की फिर लहकी।।


लिखे वीर रस सीमा पर जब

ये हथियार उठाती है

युग परिवर्तन की ताकत ले

बीज सृजन बो जाती है

आहद अनहद का नाद लिये

कविता शब्दों में चहकी।।


शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 

स्वेद बहाती खेतों में

कभी विरह में लोट लगाती

नदी किनारे रेतों में

रही आम के बौरों पर वह

भौरों जैसी कुछ बहकी।।


झिलमिल ममता के आँचल में 

छाँव ढूँढती शीतलता

पर्वत शिखरों पर जा बैठी

भोर सुहानी सी कविता

लिए अमरता की आशा में

युग के आँगन में कुहकी।।


अनिता सुधीर आख्या

14 comments:

  1. वाह्हहहहहहहहहह सुंदर, भावपूर्ण सृजन मैम

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  2. बहुत सुंदर सृजन लाजवाब

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  3. अत्यंत अनुपम सृजन मैम🙏

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    1. हार्दिक आभार गुंजित

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  4. अत्यंत उत्कृष्ट एवं हृदयस्पर्शी सृजन 💐💐💐💐😍🙏🏼

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  5. बहुत बहुत सुन्दर सरस रचना

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  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन दीदी 👌👌👌🙏🙏🙏💐💐💐

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  7. बहुत सुंदर 👌 नवगीत दी🙏

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  8. वाह वाह। काव्य की अपरिमित शक्ति

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