तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
अनिता सुधीर
अत्यंत सुंदर गीत🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteअति सुंदर एवं मनमोहक गीत सृजन 💐💐🙏🏼
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteगूढ़ भाव के साथ उत्तम रचना
ReplyDeleteBahut umda
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteबाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर जाऊँ।
ReplyDeleteचातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
मन मुग्ध करती बहुत ही खूबसूरत रचना 😊
हार्दिक आभार आ0
Deleteवाह!बहुत खूबसूरत सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteब्याह रचा कर कबसे बैठी, चाहूँ मन का गौना
ReplyDeleteमधुर प्रणय निवेदन.
प्रीत करे सिंचन.
सुन्दर अभिव्यक्ति, अनीता जी.
सादर आभार
Deleteबहुत सुंदर सखी! लक्षणा व्यंजनाओं से सुसज्जित बहुत गहन गीत ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
हार्दिक आभार सखि
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