Thursday, February 17, 2022

गीत

 


तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया  हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर  जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

अनिता सुधीर

17 comments:

  1. अत्यंत सुंदर गीत🙏

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  3. अति सुंदर एवं मनमोहक गीत सृजन 💐💐🙏🏼

    ReplyDelete
  4. गूढ़ भाव के साथ उत्तम रचना

    ReplyDelete
  5. बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर जाऊँ।
    चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
    तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
    तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
    मन मुग्ध करती बहुत ही खूबसूरत रचना 😊

    ReplyDelete
  6. वाह!बहुत खूबसूरत सृजन।

    ReplyDelete
  7. हार्दिक आभार आ0

    ReplyDelete
  8. ब्याह रचा कर कबसे बैठी, चाहूँ मन का गौना

    मधुर प्रणय निवेदन.
    प्रीत करे सिंचन.

    सुन्दर अभिव्यक्ति, अनीता जी.

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर सखी! लक्षणा व्यंजनाओं से सुसज्जित बहुत गहन गीत ।
    अप्रतिम।

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...