मृगनयनी
प्रेम रूप की श्वेत हंसिनी
लगे भोर की अरुणाई
चंचल-चपला सी मृगनयनी
चाल कुलांचे भूल चली
हौले-हौले कदम साध के
शांत चित्त की खिली कली
झुके नयन में लाज भरे जब
प्रीति पंखुड़ी गहराई।।
श्याम केश के अवगुंठन से
चाँद रूपिणी जब झाँके
अधरों का उन्माद धैर्य धर
पुष्प सितारे वह टाँके
स्निग्ध मुग्धता शीत चाँदनी
शुद्ध नीर-सी तरुणाई ।।
प्रेम मूर्ति की सुंदरता में
नहीं जलधि का शोर रहे
राग लावणी अंग सजा के
शीतल से उद्गार बहे
रमणी को परिभाषित करने
मर्यादा वो ठहराई।।
अनिता सुधीर
अद्भुत एवं सुंदर रचना 🌷🌺🌺
ReplyDeleteSo beautiful 🥰
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteधन्यवाद नूतन
Deleteबहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुंदर सौन्दर्य गीत दीदी 🙏🙏💐💐❤❤
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteऋंगार रस में डूबी सुंदर रचना …
ReplyDeleteसादर आभार आपका आ0
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