मंथन
मुक्तक
मंथन का ये विष मुझे अब पीना होगा
बिन अमरत्व की चाह अब जीना होगा,
तुम गलत कभी हो सकते हो,भला
मुझे ही अपने होठों को अब सीना होगा ।
कुंडलियां गिरगिट को भी मात दे,नेताओं के रंग। चकित भ्रमित जनता खड़ी,देख चुनावी जंग।। देख चुनावी जंग,झूठ का लगता मेला । सुन कर कड़...
सादर आभार आ0
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